बांग्लादेश के अंतर्राष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल (ICT) द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और पूर्व गृहमंत्री आसदुज़्ज़मान खान कमाल को मौत की सज़ा सुनाए जाने को दो दिन से अधिक का समय बीत चुका है। इस फैसले की गंभीरता को देखते हुए, सबसे बड़ी हैरानी की बात यह है कि अमेरिका और ब्रिटेन—जो दुनिया भर में मानवाधिकारों के सबसे मुखर समर्थक रहे हैं—ने अब तक इस सज़ा पर एक शब्द भी नहीं कहा है।
यह चुप्पी कई गंभीर सवाल खड़े करती है, खासकर इसलिए क्योंकि बांग्लादेश के ICT पर लंबे समय से न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता और कानून के बुनियादी सिद्धांतों के पालन को लेकर प्रश्न उठते रहे हैं। कई मानवाधिकार समूह और विशेषज्ञ इसे राजनीतिक रूप से प्रभावित ट्रिब्यूनल मानते रहे हैं।
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने की कड़ी आलोचना
अंतर्राष्ट्रीय शक्तियों की चुप्पी के बीच, एमनेस्टी इंटरनेशनल (Amnesty International) ने 17 नवंबर को इस फैसले की कड़ी आलोचना की। संगठन ने साफ तौर पर कहा कि यह ट्रायल और सज़ा न तो निष्ठावान है और न ही न्यायपूर्ण।
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एमनेस्टी का तर्क है कि पीड़ितों को न्याय मिलना ज़रूरी है, लेकिन मौत की सज़ा देना समाधान नहीं है, बल्कि यह मानवाधिकार उल्लंघन को और बढ़ाता है।
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संगठन ने मृत्युदंड को सबसे क्रूर, अमानवीय और अपमानजनक सज़ा बताते हुए कहा कि आधुनिक न्याय व्यवस्था में इसका कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
🇺🇸🇬🇧 मानवाधिकार पर मुखर रहे देशों की निष्क्रियता
अमेरिका और ब्रिटेन की वर्तमान चुप्पी उनके पिछले रुख के विपरीत है। शेख हसीना की पिछली सरकार के दौरान, ये दोनों देश बांग्लादेश में मानवाधिकार उल्लंघनों और लोकतंत्र की स्थिति को लेकर कड़ी बातें कहते रहे हैं।
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अमेरिका: 2023 में अमेरिकी राजदूत पीटर हास ने मानवाधिकार वॉच को बताया था कि अमेरिका को बांग्लादेश में मानवाधिकार और लोकतंत्र की स्थिति को लेकर गंभीर चिंता है। 2022 में भी अमेरिकी दूतावास ने मानवाधिकारों की रक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई थी।
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ब्रिटेन: ब्रिटेन ने 1998 में ही मृत्युदंड को ख़त्म कर दिया था। 2023 में ब्रिटिश उच्चायोग ने मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रताओं के सम्मान पर ज़ोर दिया था। हाल ही में, 2024 में ब्रिटिश सरकार ने पुलिस और कानून लागू करने वाली एजेंसियों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघनों पर एक लंबी रिपोर्ट भी जारी की थी। जुलाई 2024 में 22 ब्रिटिश सांसदों ने भी बांग्लादेश की मानवाधिकार स्थिति पर गंभीर चिंता जताई थी।
इन पिछले बयानों और सक्रियता के बावजूद, हसीना को मिली मौत की सज़ा पर दोनों देशों की धीमी और असंवेदनशील प्रतिक्रिया हैरान करती है। यह घटना दर्शाती है कि अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया अक्सर चुनिंदा होती है, जबकि बांग्लादेश के अंदर और पड़ोसी देशों में इस फैसले पर अलग-अलग तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं।