अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में दक्षिण कोरिया, जापान, मलेशिया और कजाकिस्तान सहित कई देशों से आयातित वस्तुओं पर 25 प्रतिशत तक टैरिफ (आयात शुल्क) लगाने की घोषणा की है। इस नए नियम के तहत, विभिन्न देशों के लिए अलग-अलग टैरिफ दरें निर्धारित की गई हैं, जो अब 1 अगस्त 2025 से लागू होंगी। इससे पहले ट्रंप प्रशासन ने इस टैरिफ को 9 जुलाई से लागू करने की योजना बनाई थी, लेकिन बाद में इसे एक महीने आगे बढ़ा दिया गया ताकि अमेरिका बेहतर व्यापारिक समझौतों पर पहुंच सके।
टैरिफ लगाने का मकसद और राजनीतिक पृष्ठभूमि
टैरिफ लगाने के फैसले का मकसद अमेरिकी घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाना और देश के व्यापार घाटे को कम करना बताया गया है। ट्रंप प्रशासन के अनुसार, कुछ देशों के साथ व्यापारिक असंतुलन बहुत अधिक है, जिससे अमेरिकी कंपनियां और मजदूर प्रभावित हो रहे हैं। इसलिए, टैरिफ के जरिए वे अपने उत्पादों को संरक्षण देना चाहते हैं और विदेशी वस्तुओं को महंगा करके अमेरिकी उत्पादों की बिक्री बढ़ाना चाहते हैं।
इस रणनीति को ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के तहत लागू किया जा रहा है, जो ट्रंप सरकार की प्राथमिकता रही है। उन्होंने बार-बार यह कहा है कि अमेरिका अन्य देशों के साथ असमान व्यापार समझौतों के कारण आर्थिक रूप से पिछड़ रहा है, इसलिए टैरिफ जैसे कड़े कदम जरूरी हैं।
कौन-कौन से देश और कितनी दर से टैरिफ लगेगा?
ट्रंप प्रशासन ने विभिन्न देशों के लिए टैरिफ की अलग-अलग दरें तय की हैं। इनमें से प्रमुख दरें इस प्रकार हैं:
-
म्यांमार और लाओस में 40 प्रतिशत टैरिफ।
-
कंबोडिया और थाईलैंड में 36 प्रतिशत।
-
बांग्लादेश और सर्बिया में 35 प्रतिशत।
-
इंडोनेशिया में 32 प्रतिशत।
-
बोस्निया और हर्जेगोविना तथा दक्षिण अफ्रीका में 30 प्रतिशत।
-
ट्यूनीशिया, मलेशिया, कजाकिस्तान, दक्षिण कोरिया और जापान में 25 प्रतिशत।
यह टैरिफ दरें उन देशों से आयातित विभिन्न वस्तुओं पर लगाई जाएंगी, जिनकी सूची अमेरिकी प्रशासन ने तय की है।
टैरिफ लागू होने की तारीख और संभावित बदलाव
ट्रंप ने पहले टैरिफ 9 जुलाई से लागू करने की घोषणा की थी, लेकिन बाद में व्हाइट हाउस ने कहा कि यह 1 अगस्त से प्रभावी होगा। व्हाइट हाउस के प्रवक्ता कैरोलिन लेविट ने बताया कि यह देरी इसलिए की गई ताकि अमेरिका बेहतर और अधिक लाभकारी व्यापार समझौते कर सके।
जब उनसे पूछा गया कि क्या यह तारीख निश्चित है, तो ट्रंप ने जवाब दिया कि वह दृढ़ हैं, लेकिन 100 प्रतिशत नहीं। उन्होंने संकेत दिया कि अगर कोई देश उनसे बेहतर डील के लिए संपर्क करता है, तो वे समय सीमा में बदलाव करने को तैयार हैं। इससे यह संभावना जताई जा रही है कि टैरिफ लागू होने की तारीख में और देरी हो सकती है।
अमेरिका का वैश्विक व्यापार पर प्रभाव
ट्रंप प्रशासन के इस फैसले का विश्व व्यापार व्यवस्था पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है। टैरिफ बढ़ाने से प्रभावित देशों के साथ व्यापारिक तनाव बढ़ सकते हैं। इससे वैश्विक सप्लाई चेन में बाधा आ सकती है और कई देशों की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंच सकता है।
इसके अलावा, जिन देशों पर टैरिफ लगाया गया है, वे भी अपने-अपने स्तर पर जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं। इससे वैश्विक व्यापार युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जो विश्व अर्थव्यवस्था के लिए अनिश्चितता पैदा करती है।
अमेरिका के अन्य व्यापारिक समझौते
इस बीच, अमेरिका फिलहाल सिर्फ दो देशों — वियतनाम और ब्रिटेन — के साथ व्यापारिक समझौते कर पाया है। बाकी कई देशों के साथ अभी भी कड़े और अनिश्चित परिस्थितियां हैं। ट्रंप प्रशासन का मकसद है कि वे अधिक से अधिक देशों के साथ बेहतर डील करें, जिससे अमेरिकी उत्पादों की निर्यात बढ़े और आयात पर नियंत्रण हो।
निष्कर्ष
अमेरिका द्वारा विदेशी वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाना एक बड़ा राजनीतिक और आर्थिक कदम है, जिसका उद्देश्य देश के घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देना है। हालांकि, इसका असर वैश्विक व्यापार पर गहरा हो सकता है। व्यापारिक साझेदारों के बीच इस कदम से तनाव बढ़ सकता है, और इससे बाजारों में अनिश्चितता भी उत्पन्न हो सकती है।
ट्रंप प्रशासन का कहना है कि वे बेहतर समझौतों के लिए तैयार हैं और जरूरत पड़ने पर लागू होने वाली तारीख में बदलाव कर सकते हैं। इस नई नीति की प्रगति पर विश्व की नजरें बनी हुई हैं, क्योंकि इसका प्रभाव न केवल अमेरिका बल्कि पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।