24 नवंबर की सुबह, इथियोपिया के हेली गुब्बी ज्वालामुखी ने एक ऐसा विहंगम और भयावह दृश्य प्रस्तुत किया, जिसने पल भर में दुनिया का ध्यान अफ्रीका की ओर मोड़ दिया। हजारों वर्षों से शांत पड़ा यह सुसुप्त ज्वालामुखी अचानक एक प्रचंड विस्फोट के साथ जाग उठा। कुछ ही मिनटों के भीतर, आसमान में 14 से 15 किलोमीटर ऊंचा राख और धुएं का एक विशाल गुबार छा गया। हवा की तेज़ रफ़्तार ने इस राख को महाद्वीपों के पार पश्चिम की ओर धकेला, और फिर हवा मुड़कर इसे भारत के आकाश तक ले आई, जहां से यह चीन की दिशा में बढ़ती चली गई।
इस अप्रत्याशित विस्फोट ने न केवल भूवैज्ञानिकों को चौंकाया, बल्कि इसने वैश्विक विमानन सेवाओं को भी प्रभावित करना शुरू कर दिया। भारत जैसे घनी आबादी वाले देशों में यह आशंका भी उठी कि यदि यह ज्वालामुखी राख ज़मीन तक पहुंच गई, तो दिल्ली जैसे शहरों में पहले से मौजूद गंभीर प्रदूषण की समस्या कितनी गंभीर हो सकती है।
सुसुप्त ज्वालामुखी का अचानक जागना: क्या थी वजह?
सबसे बड़ा प्रश्न यही था कि जो ज्वालामुखी 12,000 साल से शांत था, वह अचानक कैसे और क्यों फट पड़ा? दरअसल, ज्वालामुखी दो तरह के होते हैं: सक्रिय (Active) और सुसुप्त (Dormant)। सक्रिय ज्वालामुखी समय-समय पर लावा, धुआं या गैसें छोड़ते रहते हैं, जबकि हेली गुब्बी जैसे सुसुप्त ज्वालामुखी लंबे समय तक शांत रहते हैं, मानो सो गए हों।
हालांकि, धरती के भीतर की भूगर्भीय हलचलें कभी पूरी तरह नहीं रुकतीं। भूवैज्ञानिकों के अनुसार, जब धरती की परतों के नीचे स्थित मैग्मा चैंबर में दबाव बढ़ता है, तो चट्टानें दरकने लगती हैं। यदि नीचे का पिघला हुआ लावा (मैग्मा) एक कमजोर सतह खोज लेता है, तो वह रास्ता बनाकर बाहर आने लगता है और एक बड़ा विस्फोट हो सकता है।
इसके पीछे एक अहम कारण टेक्टोनिक प्लेटों की हलचल भी है। जब ये विशाल प्लेटें एक-दूसरे से टकराती या अलग होती हैं, तो उनके बीच पैदा होने वाली दरारें दबाव को बाहर निकालने का रास्ता बन जाती हैं, और ज्वालामुखी जाग उठता है। हेली गुब्बी के मामले में भी यही हुआ। मैग्मा चैंबर में जमा हजारों वर्षों का दबाव अचानक सतह की ओर धक्का मारते हुए ऊपर आया। चूंकि यह ज्वालामुखी हजारों साल से शांत था, इसलिए सतह की पपड़ी बेहद कमजोर हो चुकी थी, और यही कमजोरी इस विशाल विस्फोट का कारण बनी। मैग्मा ने इस कमजोर पपड़ी को तोड़ दिया और एक विशाल मात्रा में राख हवा में फेंक दी।
विमानन सेवाओं पर खतरा और रूट में बदलाव
इस विस्फोट से निकली राख साधारण धूल नहीं थी। यह बेहद बारीक, तेज किनारों वाले कणों का मिश्रण थी, जिसे जेट इंजनों के लिए सबसे बड़ा खतरा माना जाता है। 100 से 120 किमी/घंटा की हवा की गति के कारण राख का बादल तेज़ी से यमन, ओमान, पाकिस्तान और भारत के कुछ राज्यों तक फैल गया।
विमानन विशेषज्ञ बताते हैं कि ज्वालामुखीय राख इंजन में जाते ही पिघलकर कांच जैसा जमाव बना देती है, जिससे इंजन फेल होने का जोखिम कई गुना बढ़ जाता है। इसके अलावा, यह विमान के सेंसर, नेविगेशन सिस्टम और कॉकपिट की कांच पर धुंधला असर छोड़ सकती है। इसी खतरे को देखते हुए, कई देशों ने कुछ समय के लिए उड़ानों को डायवर्ट किया या अधिक ऊँचाई के नए उड़ान पैटर्न अपनाए।
प्रदूषण का संकट टला: आम आबादी को राहत
हालांकि, लोगों के लिए राहत की बात यह थी कि यह राख बेहद अधिक ऊँचाई पर फैली हुई थी। वैज्ञानिकों ने स्पष्ट किया कि राख की ऊँचाई 10-12 किलोमीटर से अधिक थी, जो केवल विमानों की उड़ान सीमा में आती है। जब तक यह राख ज़मीन के करीब नहीं आती, तब तक आम आबादी पर इसका प्रभाव बेहद सीमित होता है।
दिल्ली और उत्तर भारत के लोग हर साल नवंबर-दिसंबर में प्रदूषण से जूझते हैं, इसलिए यह खबर चिंता का कारण बनी थी। लेकिन, भूवैज्ञानिकों ने बताया कि हवा की दिशा लगातार इस राख को उत्तर-पूर्व (चीन की ओर) धकेलती रही। राख में सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें होती हैं, लेकिन उनका घनत्व ज़मीन तक आने योग्य नहीं था। इसलिए, प्रदूषण में अचानक उछाल का संकट टल गया और आम आबादी के लिए खतरा बहुत कम रहा।