बांग्लादेश इस समय अपने इतिहास के सबसे चुनौतीपूर्ण और अस्थिर दौर से गुजर रहा है। देश में बढ़ते कट्टरवाद, हिंसा और अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिंदुओं को निशाना बनाए जाने की खबरों के बीच मंगलवार, 30 दिसंबर 2025 को एक बड़ी खबर सामने आई। बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की कद्दावर नेता बेगम खालिदा जिया का ढाका में निधन हो गया है।
उनके निधन के साथ ही बांग्लादेश की राजनीति में एक युग का अंत हो गया है, लेकिन उनके बेटे तारिक रहमान अब सत्ता के प्रबल दावेदार बनकर उभरे हैं। फरवरी 2026 में होने वाले आम चुनावों से ठीक पहले यह घटनाक्रम पूरे दक्षिण एशिया की राजनीति को प्रभावित करने वाला है।
शुरुआती जीवन और राजनीतिक उदय
15 अगस्त 1945 को जन्मी खालिदा खानम 'पुतुल' का परिवार 1947 के बंटवारे के बाद दिनाजपुर चला गया था। उनकी शादी पाकिस्तानी सेना के कैप्टन जियाउर रहमान से हुई। 1971 में बांग्लादेश की आजादी के बाद उनके पति जियाउर रहमान देश के राष्ट्रपति बने, लेकिन उनकी हत्या के बाद खालिदा जिया ने सक्रिय राजनीति में कदम रखा।
खालिदा जिया के नाम बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री होने का गौरव दर्ज है। उन्होंने कुल तीन बार देश का नेतृत्व किया:
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1991 - 1996: पहली बार प्रधानमंत्री बनीं।
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1996 (फरवरी): संक्षिप्त कार्यकाल।
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2001 - 2006: तीसरा और सबसे प्रभावी कार्यकाल।
भारत-विरोधी राष्ट्रवाद और कूटनीतिक टकराव
खालिदा जिया की राजनीति का मूल स्तंभ हमेशा से भारत-विरोधी राष्ट्रवाद रहा। उनकी पाकिस्तानी पृष्ठभूमि और विचारधारा के कारण भारत के साथ उनके संबंध हमेशा तनावपूर्ण रहे। उन्होंने अपनी राजनीति को शेख हसीना की 'भारत समर्थक' छवि के विपरीत खड़ा किया।
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प्रणब मुखर्जी का अपमान: मार्च 2013 में जब भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ढाका दौरे पर थे, तब विपक्ष की नेता रहते हुए खालिदा ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया था। उनका तर्क था कि भारत की तत्कालीन यूपीए सरकार शेख हसीना को अधिक महत्व दे रही है।
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संधियों का विरोध: उन्होंने 1972 की 'भारत-बांग्लादेश मैत्री संधि' को 'गुलामी की संधि' और 1996 की 'गंगा जल साझा संधि' को 'गुलामी का सौदा' करार दिया था।
सुरक्षा चुनौतियां और उग्रवाद को बढ़ावा
भारत के नजरिए से खालिदा जिया का कार्यकाल सुरक्षा के लिहाज से काफी चिंताजनक था। आरोप लगते रहे हैं कि उनके शासनकाल में:
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पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI ने बांग्लादेश में अपनी जड़ें मजबूत कीं।
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भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के उग्रवादी समूहों (जैसे ULFA और NSCN) को बांग्लादेश की धरती पर सुरक्षित पनाहगाह मिली।
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उनके कार्यकाल में कट्टरपंथी ताकतों को राजनीतिक संरक्षण मिला, जिससे भारत-बांग्लादेश सीमा पर अस्थिरता बढ़ी।
भारत यात्राएं और द्विपक्षीय प्रयास
तमाम कड़वाहटों के बावजूद, खालिदा जिया ने प्रधानमंत्री के रूप में 2006 में भारत की यात्रा की और तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से मुलाकात की। उनकी आखिरी चर्चित भारत यात्रा अक्टूबर 2012 में हुई थी, जब उन्होंने विपक्ष की नेता के तौर पर नई दिल्ली का दौरा किया और रिश्तों को सुधारने की बात कही थी, हालांकि धरातल पर उनकी नीति कभी नहीं बदली।
वर्तमान संकट और भविष्य की राह
आज जब खालिदा जिया का निधन हुआ है, बांग्लादेश में हिंसा और अराजकता का माहौल है। उनके बेटे तारिक रहमान, जो लंबे समय से लंदन से पार्टी का संचालन कर रहे हैं, अब प्रधानमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे हैं। भारत के लिए चिंता का विषय यह है कि क्या भविष्य की सरकार भी खालिदा जिया की उसी पुरानी भारत-विरोधी नीति पर चलेगी या नए दौर के रिश्तों की शुरुआत होगी।