अमेरिकी हाई टैरिफ और बढ़ते व्यापारिक दबावों के बीच भारत ने अपनी वैश्विक व्यापार रणनीति पर दोबारा विचार करना शुरू कर दिया है। लंबे समय से चीन के साथ जमी बर्फ को पिघलाने और व्यापारिक रिश्तों को नए सिरे से संतुलित करने की कोशिशें तेज हुई हैं। इसका मुख्य उद्देश्य अमेरिकी बाजार पर अत्यधिक निर्भरता को कम करना और चीन, रूस व अन्य उभरते बाजारों की ओर निर्यात का दायरा बढ़ाना है। हालांकि, हालिया रिपोर्ट्स यह भी संकेत देती हैं कि इन प्रयासों के बावजूद चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा कम होने के बजाय और बढ़ गया है। इसकी बड़ी वजह यह है कि चीन से भारत का आयात तेज़ी से बढ़ा है, जबकि भारत का निर्यात अपेक्षाकृत कमजोर बना हुआ है।
चीन के साथ बढ़ता व्यापार घाटा, चिंता का विषय
आंकड़ों पर नजर डालें तो साफ होता है कि भारत-चीन व्यापार में असंतुलन लगातार गहराता जा रहा है। भारत चीन से इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी, केमिकल्स और अन्य औद्योगिक उत्पादों का बड़े पैमाने पर आयात करता है, जबकि चीन को भारत का निर्यात सीमित श्रेणियों तक सिमटा हुआ है। इससे भारत पर न केवल व्यापार घाटे का दबाव बढ़ रहा है, बल्कि घरेलू उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। इसी पृष्ठभूमि में नीति-निर्माता अब ऐसे वैकल्पिक रास्तों की तलाश कर रहे हैं, जिनसे भारत वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी भूमिका मजबूत कर सके।
कैसे चीन की बढ़ेगी चिंता?
इसी बीच आर्थिक शोध संस्थान ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) की एक अहम रिपोर्ट सामने आई है, जो भारत के लिए नए अवसरों की ओर इशारा करती है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत के पास चीन की चिंता बढ़ाने और उसकी वैश्विक पकड़ को चुनौती देने का एक बड़ा मौका मौजूद है, खासकर न्यूजीलैंड जैसे बाजार में। वर्ष 2024-25 में न्यूजीलैंड ने चीन से 10 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक का आयात किया, जबकि भारत से केवल 71.1 करोड़ अमेरिकी डॉलर का ही सामान खरीदा गया। यह तब है जब न्यूजीलैंड का कुल आयात लगभग 50 अरब अमेरिकी डॉलर रहा।
एफटीए से खुल सकते हैं बड़े रास्ते
GTRI का मानना है कि प्रस्तावित भारत-न्यूजीलैंड द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के तहत भारतीय निर्यातकों के लिए कई सेक्टरों में बड़े अवसर मौजूद हैं। इनमें कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, पेट्रोलियम उत्पाद, औद्योगिक रसायन, दवा व स्वास्थ्य सेवाएं, वस्त्र और परिधान, इलेक्ट्रॉनिक व विद्युत उपकरण, मोटर वाहन, परिवहन उपकरण, वैमानिकी, उच्च मूल्य विनिर्माण और फर्नीचर जैसे क्षेत्र शामिल हैं। इन क्षेत्रों में भारत की उत्पादन क्षमता मजबूत है और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी भी मानी जाती है।
GTRI के संस्थापक अजय श्रीवास्तव के अनुसार, कई ऐसे सेक्टर हैं जहां चीनी प्रतिस्पर्धा लगभग नगण्य है, फिर भी भारत का निर्यात केवल एक लाख से 50 लाख अमेरिकी डॉलर के बीच सीमित है। यह दर्शाता है कि न्यूजीलैंड का यह बाजार किसी स्थापित आपूर्तिकर्ता द्वारा बंद नहीं है, बल्कि अब तक काफी हद तक अनछुआ रहा है।
कैसे निकलेगी चीन की हवा?
उदाहरण के तौर पर, भारत दुनिया के सबसे बड़े परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पाद निर्यातकों में शामिल है, जिसका वैश्विक निर्यात 69.2 अरब अमेरिकी डॉलर का है। वहीं न्यूजीलैंड हर साल करीब 6.1 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य के पेट्रोलियम उत्पाद आयात करता है। इसके बावजूद वह भारत से केवल 23 लाख अमेरिकी डॉलर का आयात करता है, जबकि चीन से 18.1 करोड़ अमेरिकी डॉलर की आपूर्ति होती है। यह अंतर साफ दिखाता है कि भारत की हिस्सेदारी कितनी कम है।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के लिए असली चुनौती सिर्फ एफटीए पर हस्ताक्षर करना नहीं, बल्कि उसे लक्षित निर्यात प्रोत्साहन, मानक सहयोग, नियामक सरलता और बेहतर लॉजिस्टिक समर्थन के साथ जोड़ना है। यदि भारत इन पहलुओं पर प्रभावी ढंग से काम करता है, तो वह न्यूजीलैंड जैसे बाजारों में चीन पर निर्भरता कम कर सकता है और वैश्विक व्यापार में अपनी स्थिति को कहीं अधिक मजबूत बना सकता है।