मुंबई, 16 अक्टूबर, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। राजस्थान लोक सेवा आयोग (RPSC) की सब इंस्पेक्टर भर्ती-2021 को लेकर पहले ही हाईकोर्ट में विवाद खड़ा हो चुका है। पहले आयोग की पूर्व मेंबर मंजू शर्मा ने मामले में अपनी आपत्ति दर्ज करवाई थी और अब पूर्व चेयरमैन संजय श्रोत्रिय ने भी हाईकोर्ट में अपील दायर की है। 28 अगस्त को हाईकोर्ट की एकलपीठ ने भर्ती प्रक्रिया में अनियमितताओं का हवाला देते हुए RPSC के सदस्यों पर गंभीर टिप्पणियां की थीं और भर्ती रद्द करने की सिफारिश की थी। संजय श्रोत्रिय ने इस आदेश में उनके खिलाफ की गई टिप्पणियों को हटाने की मांग की है।
अपील में श्रोत्रिय का कहना है कि हाईकोर्ट ने एसआईटी की रिपोर्ट को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। एसआईटी ने अपनी जांच में स्पष्ट रूप से यह दर्शाया था कि कौन पेपरलीक में शामिल था और कौन नहीं, लेकिन एकलपीठ ने इस रिपोर्ट को महत्व नहीं दिया। इसके अलावा जिस बाबूलाल कटारा के बयान को आधार मानकर RPSC के सभी सदस्यों के खिलाफ टिप्पणी की गई, वह पुलिस में दर्ज बयान है जिसे ट्रायल कोर्ट भी मान्यता नहीं देता। श्रोत्रिय का कहना है कि बिना सुनवाई और क्रिमिनल ट्रायल के आरोप लगाना अनुचित है।
संजय श्रोत्रिय के वकील युवराज सामंत ने बताया कि SI भर्ती का इंटरव्यू बोर्ड डीजीपी की सिफारिश पर ही बनता है और इसमें दो आईजी स्तर के वरिष्ठ अधिकारी शामिल होते हैं। अगर बोर्ड में किसी प्रकार की गड़बड़ी होती, तो वरिष्ठ अधिकारी तुरंत आपत्ति दर्ज करवा देते। चूंकि ऐसा नहीं हुआ, इसलिए आरोप उन पर नहीं लगाए जा सकते। वहीं, पेपरलीक की एफआईआर भी सचिव की ओर से चेयरमैन के निर्देश पर दर्ज कराई गई थी। ऐसे में संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के खिलाफ टिप्पणी करना असंवैधानिक है।
हाईकोर्ट ने 28 अगस्त के अपने आदेश में तत्कालीन RPSC चेयरमैन और सदस्यों पर आरोप लगाया था कि पूर्व सदस्य रामू राम राईका की बेटी को इंटरव्यू में अच्छे अंक दिलाने के लिए आयोग के शीर्ष अधिकारियों से सिफारिश की गई थी। जस्टिस समीर जैन ने अपने आदेश में कहा था कि इस तरह की सदस्य भागीदारी आयोग की पूरी भर्ती प्रक्रिया में भ्रष्टाचार और अनियमितता की ओर संकेत देती है, जिससे इंटरव्यू और लिखित परीक्षा दोनों की विश्वसनीयता खतरे में पड़ती है। संजय श्रोत्रिय की अपील में कहा गया है कि ऐसे गंभीर आरोप बिना सुनवाई और जांच के लगाना सही नहीं है और उन्हें पूरी तरह से अवसर दिया जाना चाहिए। उनका कहना है कि आयोग की कार्यप्रणाली में किसी भी तरह की गड़बड़ी को बिना प्रमाणित किए सभी सदस्यों पर आरोप लगाना न्यायसंगत नहीं है।