सुप्रीम कोर्ट ने कल मंगलवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं शादी के समय माता-पिता द्वारा उसे या उसके पति को दिए गए मेहर, कैश, सोना और दूसरी चीजें कानूनी तौर पर वापस पाने की हकदार हैं। कोर्ट का यह फैसला तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं की आर्थिक सुरक्षा और सम्मान को मजबूत करने के मकसद से दिया गया है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि इस तरह की चीजों को महिला की संपत्ति मानी जानी चाहिए और शादी टूटने के बाद उसे वापस कर दिया जाना चाहिए।
जस्टिस संजय करोल और एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने कहा कि मुस्लिम वुमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन डायवोर्स) एक्ट, 1986 (Muslim Women (Protection of Rights on Divorce) Act, 1986) के नियमों का मतलब इस तरह निकाला जाना चाहिए कि यह बराबरी और स्वायत्ता (Autonomy) के संवैधानिक वादे को पूरा करे, न कि इसे सिर्फ सिविल-डिस्प्यूट के नजरिए से देखा जाए।
समाज में पितृसत्तात्मक भाव पर SC की टिप्पणी
बेंच ने अपने फैसले में कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए साल 1986 में बनाए गए कानून में समानता, गरिमा और स्वायत्तता की भावना को सर्वोपरि रखा जाना चाहिए। कोर्ट ने इस बात पर भी ध्यान देने को कहा कि छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में पितृसत्तात्मक भेदभाव अब भी देखी जाती है।
बेंच ने 1986 के एक्ट की धारा 3 का जिक्र किया, जो एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला को उन सभी संपत्ति का हक देता है जो उसे शादी से पहले, शादी के समय या शादी के बाद उसके रिश्तेदारों, पति, या पति के किसी रिश्तेदार ने दी हैं।
बेंच ने कहा, "देश का संविधान सभी के लिए एक उम्मीद, यानी बराबरी तय करता है, लेकिन अभी यह होना बाकी है। कोर्ट को इस मकसद के लिए अपना काम करते हुए, अपनी सोच को सामाजिक न्याय के फैसले पर आधारित करना चाहिए।"
कलकत्ता हाई कोर्ट का फैसला रद्द, 6 हफ्ते में लौटाने का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाई कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक महिला के पूर्व पति के पक्ष में फैसला सुनाया गया था और उसे (पति को) उस सामान का कुछ हिस्सा वापस करने से राहत दी गई थी।
मामला: याचिकाकर्ता और प्रतिवादी की शादी 28 अगस्त 2005 को हुई थी। तलाक के बाद, महिला ने मुस्लिम वुमेन एक्ट, 1986 की धारा 3 के तहत कोर्ट का रुख किया और 17.67 लाख रुपये से अधिक की राशि और सामान वापस किए जाने का अनुरोध किया था।
SC का आदेश:
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पूर्व पति (प्रतिवादी) को यह निर्देश दिया जाता है कि वह अगले 6 हफ्ते के अंदर कोर्ट की रजिस्ट्री में आदेश के अनुपालन का हलफनामा दाखिल करे।
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राशि सीधे अपीलकर्ता (पूर्व पत्नी) के बैंक खाते में भेजी जाएगी।
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यदि यह सब कुछ समय के अंदर नहीं हुआ तो प्रतिवादी को 9 फीसदी सालाना ब्याज के दर से रकम चुकानी होगी।
यह फैसला तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के लिए एक बड़ी राहत है, जो उन्हें शादी के दौरान मिले सामान पर उनका कानूनी हक सुनिश्चित करता है।