बिहार विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और अब मतदान में कुछ ही दिन शेष रह गए हैं। 6 नवंबर को पहले चरण की वोटिंग होगी, जबकि दूसरे चरण का मतदान 11 नवंबर को होगा। राज्य की सियासत में इस बार सबसे ज्यादा चर्चा जिस सीट को लेकर हो रही है, वह है पटना जिले की मोकामा विधानसभा सीट। यह सीट एक बार फिर ‘बाहुबली बनाम बाहुबली’ की जंग का अखाड़ा बन चुकी है। यहां एक तरफ हैं जेडीयू विधायक अनंत सिंह, जिनका नाम दशकों से मोकामा की राजनीति में दबदबे के साथ जुड़ा रहा है, तो दूसरी ओर राजद प्रत्याशी वीणा देवी, जो पूर्व सांसद और बाहुबली नेता सूरजभान सिंह की पत्नी हैं। तेजस्वी यादव ने इस चुनावी मुकाबले को और दिलचस्प बना दिया है, क्योंकि उन्होंने जानबूझकर अनंत सिंह के किले को चुनौती देने के लिए एक पुराने प्रतिद्वंद्वी परिवार को मैदान में उतारा है।
अनंत सिंह—‘छोटे सरकार’ के नाम से मशहूर
अनंत सिंह बिहार की राजनीति के सबसे चर्चित चेहरों में से एक हैं। जनता के बीच वे ‘छोटे सरकार’ के नाम से मशहूर हैं। 2005 से लगातार मोकामा सीट से विधायक रहे हैं। कभी वे नीतीश कुमार के सबसे करीबी माने जाते थे, लेकिन बाद में दोनों के रास्ते अलग हो गए। फिलहाल वे जेडीयू से दोबारा मैदान में हैं। अनंत सिंह की छवि एक सशक्त, दबंग और जनाधार वाले नेता की रही है। उनके ऊपर कई आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनकी संख्या 28 तक बताई जाती है। बावजूद इसके, उनका जनसमर्थन अब भी मजबूत है। चुनाव आयोग में दाखिल शपथपत्र के अनुसार उनकी कुल संपत्ति करीब ₹37.88 करोड़ है। 2010 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जेल में रहते हुए चुनाव लड़ा था और भारी मतों से जीत दर्ज की थी। यही वजह है कि मोकामा में उन्हें आज भी अजेय माना जाता है।
तेजस्वी यादव का ‘प्लान्ड मूव’ – बाहुबली बनाम बाहुबली
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि तेजस्वी यादव ने मोकामा सीट को लेकर एक सोची-समझी रणनीति अपनाई है। वे जानते हैं कि अनंत सिंह को चुनौती देने के लिए सिर्फ एक मजबूत प्रत्याशी ही काम आ सकता है। इसलिए, उन्होंने बाहुबली सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी को टिकट देकर मैदान में उतारा। सूरजभान सिंह पहले लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रह चुके हैं, लेकिन हाल ही में उन्होंने पार्टी से इस्तीफा देकर राजद का दामन थाम लिया है। इससे साफ है कि तेजस्वी यादव इस सीट को हर हाल में जीतना चाहते हैं, भले इसके लिए उन्हें दूसरे बाहुबली के साथ गठजोड़ ही क्यों न करना पड़े। राजनीतिक हलकों में कहा जा रहा है कि मोकामा की इस लड़ाई में अब यह मुकाबला केवल दो उम्मीदवारों का नहीं, बल्कि दो बाहुबली परिवारों के बीच प्रतिष्ठा की जंग बन गया है।
सूरजभान सिंह—नब्बे के दशक का ‘अंडरवर्ल्ड किंग’
सूरजभान सिंह का नाम बिहार की राजनीति में लंबे समय तक ‘गुंडाराज’ और ‘अंडरवर्ल्ड’ से जुड़ा रहा है। 1990 के दशक में उनका प्रभाव इतना था कि पटना और उसके आसपास रेलवे के ठेकों से लेकर सरकारी कॉन्ट्रैक्ट तक बिना उनकी अनुमति के पास नहीं होते थे। साल 2000 में वे मोकामा सीट से विधायक बने थे और उस समय उन्होंने अनंत सिंह के भाई दिलीप सिंह को हराया था। अब उनकी पत्नी वीणा देवी उसी सीट से चुनावी मैदान में हैं। इसका मतलब यह है कि दो दशकों बाद फिर वही परिवार एक-दूसरे के आमने-सामने हैं।
मोकामा सीट—बिहार की ‘बाहुबली राजनीति’ का केंद्र
मोकामा विधानसभा सीट बिहार की उन चुनिंदा सीटों में से एक है, जहां जातीय समीकरण, प्रभावशाली छवि और स्थानीय पकड़ निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यहां के मतदाता बाहरी हस्तक्षेप से ज्यादा अपने नेता की ‘पहुंच और प्रभाव’ को प्राथमिकता देते हैं। यही कारण है कि अनंत सिंह लगातार यहां से जीतते आए हैं। लेकिन इस बार समीकरण कुछ अलग हैं—राजद के पास यादव और मुस्लिम वोट बैंक है, जबकि जेडीयू का सहारा कोर वोटर और एनडीए का समर्थन है। ऐसे में मोकामा की लड़ाई सिर्फ बाहुबल की नहीं, बल्कि राजनीतिक रणनीति की भी परीक्षा बन गई है।